Covid के समय में लिखी हुई कुछ पंक्तिया
तांडव चारों और मचा है लिक्खूँ मैं किस कालिख से
आंसुओं का शोर मचा है लिक्खूँ मैं किस कालिख से
वो देखो एक लाश बेचारी जलने को बेताब हुई
देखो वो समशान में देखो कितनी बड़ी कतार हुई
प्राणवायु की आस लगा के घुट घुट के दम तोडा होगा
मरने पर भी चैन कहाँ ये बिना चिता लाचार हुई
रात दिन बस बिना रुके अंगार ये सब को खाता जाता
उम्मीदों का ढ़ेर जला है लिक्खूँ मैं किस कालिख से ... तांडव चारों
-- सौरभ जोषी