Monday, August 18, 2025

तांडव

Covid के समय में लिखी हुई कुछ पंक्तिया  

 

तांडव चारों  और मचा है लिक्खूँ मैं किस कालिख से 

आंसुओं का शोर मचा है लिक्खूँ मैं किस कालिख से 


 

वो देखो एक लाश बेचारी जलने को बेताब हुई 

देखो वो समशान में देखो कितनी बड़ी  कतार हुई

प्राणवायु की आस लगा के घुट घुट के दम तोडा होगा 

मरने पर भी चैन कहाँ  ये बिना चिता लाचार हुई 

रात दिन बस बिना रुके अंगार ये सब को खाता जाता 

उम्मीदों का ढ़ेर जला है लिक्खूँ मैं किस कालिख से  ... तांडव चारों 

                               -- सौरभ जोषी  


મિત્રતા દિવસ નિમિત્તે

 

મિત્રતા દિવસ નિમિત્તે લખેલ એક શેર 

 ( છંદ બંધારણ : લગાગાગા લગાગાગા લગાગાગા લગાગાગા )

ફરિશ્તાઓ નથી જોયા ભલે "સૌરભ" જગતમાં તેં ,

તમો જેવા જો મિત્રો હો પછી ક્યાં ખોટ સાલે છે.

 

અને તેનો જ હિન્દી માં ભાવાનુવાદ 

 

 हुआ क्या जो नहीं देखा यहाँ "सौरभ" फ़रिश्तों को | 

हमें खुशहाल करने को हमारे यार काफी हैं ||