Well,
I was looking for it and found it here (http://mayankshukla1.blogspot.com/2009/11/ymi-ye-mera-india-sher-o-shayari.html). Copying here for my own record :-). Thanks to mayank for posting it.
किरण चाहू तो दुनिया के सरे अँधेरे घेर लेते है |
कोई मेरे तरह जी ले तो जीना भूल जायेगा ||
साथ भी छोडा तो कब,जब सब बुरे दिन कट गए |
ज़िन्दगी तुने कहा आकर दिया धोखा मुझे ||
हमें इस चिस्त से उम्मीद क्या थी और क्या निकला |
कहा जाना हुआ था तय कहा से रास्ता निकला ||
खुदा जिनको समझते थे वो शीशा थे न पत्थर थे |
जिसे पत्थर समझते थे वही अपना खुदा निकला ||
जिसने इस दौर के इन्सान किये है पैदा वो मेरा भी खुदा होगा मुझे मंज़ूर नहीं |
अगर टूटे कीसी का दिल ,तो शब् भर आख रोती है |
ये दुनिया है गुलो की जी इसमें काटे पिरोती है ||
हम मिलते है अपने गाओ में दुश्मन से भी इठला कर |
तुम्हारा शहर देखा तो बड़ी तकलीफ होती है ||
3 comments:
तुम्हारे जैसे हमने देखनेवाले नहीं देखे ,
जिगर में किस तरह से रंजो ग़म पाले नहीं देखे ,
यहाँ पर जात मजहब का हवाला सबने देखा है,
किसी ने भी हमारे पाओं के छाले नहीं देखे ......
तुम्हारे जैसे हमने देखनेवाले नहीं देखे ,
जिगर में किस तरह से रंजो ग़म पाले नहीं देखे ,
यहाँ पर जात मजहब का हवाला सबने देखा है,
किसी ने भी हमारे पाओं के छाले नहीं देखे ...... II
किरण चाहूं तो दुनिया के अँधेरे घेर लेते हैं,...
मेरी तरह कोई जी ले तो जीना भूल जायेगा II
कदम उठने नहीं पाते के रस्ता काट देता है,
मेरे मालिक मुझे आखिर तू कब तक आजमाएगा II
अगर टूटे किसी का दिल ,तो शब् भर आँख रोती है |
ये दुनिया है गुलो की जो इसमें काटे पिरोती है ||
हम मिलते है अपने गाँव में दुश्मन से भी इठला कर |
तुम्हारा शहर देखा तो बड़ी तकलीफ होती है ||
साथ भी छोड़ा भी तो कब,जब सब बुरे दिन कट गए |
ज़िन्दगी तूने कहाँ आकर दिया धोखा मुझे ||
हमें इस चिश्त से उम्मीद क्या थी और क्या निकला |
कहाँ जाना हुआ था तय कहाँ से रास्ता निकला ||
खुदा जिनको समझते थे वो शीशा थे न पत्थर थे |
जिसे पत्थर समझते थे वही अपना खुदा निकला ||
जिसने इस दौर के इन्सान किये है पैदा वो मेरा भी खुदा होगा मुझे मंज़ूर नहीं |
एक छुट रहा है अब भी....
"मेरी आँखों में आंसू...तुझसे क्या कहूँ हमदम..
ठहर जाये तो अंगारा,बह जाये तो दरिया है..."
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