Thursday, September 22, 2011

ज़िन्दगी की शतरंज

ज़िन्दगी की शतरंज
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हम कुछ और नहीं,
हैं शतरंज के कुछ मोहरे

कभी चलते चाल सीधी,
कभी टेढ़ी ही चाल चलते,
हम कुछ और नहीं,
हैं  शतरंज के कुछ मोहरे

कभी रोक देती हमें कोई रूकावट,
कभी फांद कर उसे  आगे बढ़ते,
आ जाते कभी आमने सामने,
करते कुर्बान किसी को फायदे के लिए,
हो जाते हम कभी फ़ना किसी के लिए,
बढ़ जाते अकेले आगे कभी,
हम तरक्की की चाह में,
कभी मुकाबला करते आंधीयों का,
एक दिवार बन के,
हैं  कुछ काले कुछ उजले हमारे चेहरे
हम कुछ और नहीं,
हैं  शतरंज के कुछ मोहरे

खेलते हम अटपटे दाव,
कभी उलजाते, कभी खुद ही उलज जाते
रहेते शह देने की ताक में,
कभी जीत जाते,
खा जाते कभी मात,
हम कुछ और नहीं,
हैं  शतरंज के कुछ मोहरे

--सौरभ जोषी